Thursday, November 2, 2017

MHT3:- कुत्ता शेर और बंदर, एक कहानी

Kutta, Sher Aur Bandar 
[Nice Story]

Ek din ek kutta jungle main raasta kho gaya. Tabhi usane dekha ek sher uskii taraf aa raha hai. Kutte ki saans rookh gayi. "Aaj to kaam tamaam mera!" usne socha. Phir usne saamane kuchh sookhi haddiyan padi dekhi. Woh aate hue sher ki taraf peeth kar ke baith gaya aur ek sookhi hadii ko choosne laga aur zor zor se bolne laga, "wah! Sher ko khaane ka mazaa hi kuch aur hai. Ek aur mil jaaye to poori daawat ho jayegi!" 

Aur usne zor se dakaar mara. Is bar sher soch mein pad gayaa. Usne socha "ye kutta to sher ka shikar karta hai! Jaan bacha kara bhago!" 

Aur sher wahan se jaan bachaa ke bhaaga. 

Ped par baitha ek Bandar yeh sab tamasha dekh raha tha. Usne socha yeh mauka achha hai sher ko saari kahani bata deta hoon - sher se dosti ho jayegi aur usse zindagi bhar ke liye jaan ka khatra dur ho jayega.. Woh phataphat sher ke pichhe bhaaga. Kutte ne Bandar ko jaate hue dekh liya aur samajh gayaki koi locha hai. Udhar Bandar ne sher ko sab bata diya ki kaise kutte ne use bewakoof banaya hai. Sher zor se dahada, "chal mere saath abhi uski leela khatam karta hoon" aur Bandar ko apani peeth par baitha kar sher kutte ki taraf lapka. 

Can u imagine the quick management by the DOG... 





Kutte ne sher ko aate dekha to ek baar phir uskii taraf peeth karke baith gaya aur zor zor se bolne laga, "Is Bandar ko bhej ke 1 ghanta ho gaya, saala ek sher phaans kar nahi la sakta!" 

Moral of the story: 
There are many such monkeys around us, try to identify them..
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Wednesday, November 1, 2017

MHT2:- हमारे दृष्टिकोण को प्रभावित करता सोशल मीडिया

सोशल मीडिया जो आज काफी हद तक हमारे दिमाग पर हावी हो चूका है। हम जो कुछ सोचते हैं या किसी विषय के बारे में बात करते हैं वह बहुत हद तक सोशल मीडिया से प्रभावित होता है। हम सोशल मीडिया पर दिखाई गई सभी तथ्यों, आंकड़ो को सही भी मानते है।

हमारी खुद की सोच लगभग विलुप्त हो चुकी है। आज सोशल मीडिया पर जो मुद्दे हैं वही हमें देश के सबसे बड़े मुद्दे लगते हैं जैसे राम मंदिर, नोटबंदी, नई कर व्यवस्था और ना जाने क्या-क्या।
लेकिन वास्तविक तौर पर  गरीबी, महंगाई, रोजगार, जनसंख्या, प्रदूषण जैसी समस्याएं ही बड़ी समस्याएं है।  सिर्फ 2 दिन सोशल मीडिया से दूर रह कर देखिय आपको  अहसास होगा  कि नोटबंदी, राम मंदिर, कश्मीर, धार्मिक मुद्दे देश में इतने भी सक्रिय नहीं है जितने सोशल मीडिया में बना दिए हैं।
और तो और हमारे सामने सभी तथ्य इस प्रकार रख दिए जाते हैं कि सोशल मीडिया में, हमें उन पर यकीन करना ही पड़ता है। सोशल मीडिया हमारे लिए अलग ही धारणाएं बना देता है,  इसलिए जरूरी है कि हम अपनी सोच का इस्तेमाल करें और उन्हें ही खबरों पर ध्यान दें जो पुख्ता तथ्य द्वारा साबित हो।
कभी कुछ टाइम के लिए "मोबाइल डेटा" या " वाई-फाई" ऑफ करके देखीये, शुकून मिलेगा। 
धन्यवाद

Tuesday, October 31, 2017

MHT1:- हमारी 'वास्तविक' मूलभूत आवश्यकता

हमे पढ़ाया गया था कि हमारी मूलभूत आवश्यकताएं यानी Basic Needs रोटी कपड़ा और मकान है। किसने तय किया कि हमारी मूलभूत आवश्यकताएं सिर्फ यही है, जिनके बिना हम जीवित नही रह सकते।
अगर क्रमबद्ध तरीके से चले तो पता चलता है कि
मकान के बिना जिंदगी बिताई जा सकती है, किसी शरणार्थी की तरह या फुटपाथ या किसी पर आश्रित होकर।
कपड़े के बगैर यानी निम्नतम कपड़ो में भी बहुत से लोग गुजारा करते है, हर मौसम में हर हालात में।
और
रोटी के बिना 11 दिन तक जीवित रहा जा सकता है, यह मैं नही विज्ञान कहता है।
इन तीनो आवश्यकताओं की एक कीमत है, यानी ये मुफ्त में नही है।
लेकिन ये उधार ली जा सकती है, या कोई किसी को दान भी कर सकता है।
अब एक ऐसी चीज़ जो मुफ्त है लेकिन हम उसके बगैर     कुछ मिनट भी नही रह सकते। वो सूर्य के प्रकाश की तरह असीमित भी नही है।
जी हाँ,
मैं बात कर रहा हु शुद्ध हवा या ऑक्सिजन की।
नाजाने क्यों तय करने वाले ने इसे मूलभूत आवश्यकताओं में शामिल क्यों नही किया। जबकि इसके बगैर कुछ मिनट भी हम जीवित नही रह सकते।
शायद मुफ्त है, इसलिए,
बाकी चीज़ों की एक कीमत है ना। और हमे जो मुफ्त मिलता है उसका दोहन हम दिल खोलकर करते है, या यूं कहें बर्बाद करते है।
इस सूची में पानी को भी सम्मलित किया जाना चाहिए।

चलिए छोड़िये फालतू की बात।
खुशखबरी यह है कि एमआई नामक कंपनी ने इलेक्ट्रिक एयर प्योरिफायर बाजार में उतारा है, वो भी मात्र दस हज़ार में । जो आपके एक कमरे को पूरी तरह से शुद्ध रखेगा। चलेगा बिजली से मगर।
है ना कमाल की बात। हम मूर्ख इतना नही समझते दस हज़ार के पेड़ पौधे पूरे मोहल्ले गांव सेक्टर शहर को शुद्ध कर सकते है। लेकिन हम अपने कमरे की सोच रहे है।
संभल जाओ यार, अभी आर.ओ है पानी के लिए।
कल वो प्योरिफायर आएगा।
परसो कमर में ऑक्सिजन सिलेंडर टाँगना होगा।
सबसे पहले समझना होगा कि आज हमारी मूलभूत आवश्यकता वो नही जो किसी जमाने मे तय की गई थी, आज परिस्थिति कुछ और है, आवश्यकता कुछ और।
आगे आपकी मर्जी।


धन्यवाद।




MHT3:- कुत्ता शेर और बंदर, एक कहानी

Kutta, Sher Aur Bandar  [Nice Story] Ek din ek kutta jungle main raasta kho gaya. Tabhi usane dekha ek sher uskii taraf aa raha hai. Kutte...